इस मानसिकता को मार्क लेविन ने अलजजीरा चैनल पर अपने लेख में सामूहिक पागलपन बताया है।
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लेकिन सवाल उठता है कि क्या किसी सामूहिक पागलपन के खिलाफ सदिच्छा जैसे शाकाहारी हथियार से लड़ा जा सकता है।
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अगर हैं तो क्या ये सामूहिक पागलपन पढेलिखे लोगों में भी होता है या ब्लॉगजगत के लोग पढेलिखे नहीं है.
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मैं जब से ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ, मैंने अक्सर ही यहाँ पर ब्लोग्गेर्स में ऐसे ही सामूहिक पागलपन के दौरे पड़ते देखे हैं …..
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सामूहिक पागलपन की स्थिति में लोग सामूहिक रूप से किसी भी काल्पनिक विचार या बात को सच समझ लेते हैं और सही बात को समझने के लिए अपनी सामान्य बुद्धि का प्रयोग भी नहीं करते.
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आस्तिक और नास्तिक की परिभाषा, लोगों का भगवान के नाम पर अँधा विश्वास, ढकोसले, धार्मिक अफवाहें, जनता का सामूहिक पागलपन और भगवान के नाम का सहारा लेकर भोली भाली जनता को लूटने वाले धर्म के ठेकेदार और तथाकथित साधू महात्माओं का पर्दाफाश बहुत प्रभावी रूप से किया है.
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सच्चा साहित्य तो उसी स्थिति में लिखा जा सकता है, जब लिखने वाला हिन्दू-जुल्म, मुसलमान-जुल्म, या कांग्रेस की राजनीति और मुस्लिम लीग की राजनीति, या हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के फेर में पड़े बिना, उस अनुभव पर हाथ डाल सके जिसका सरोकार इस सवाल से हो कि सामूहिक पागलपन के उस युग में इंसान के हाथों इंसान पर क्या बीती?
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सच्चा साहित्य तो उसी स्थिति में लिखा जा सकता है, जब लिखने वाला हिन्दू-जुल्म, मुसलमान-जुल्म, या कांग्रेस की राजनीति और मुस्लिम लीग की राजनीति, या हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के फेर में पड़े बिना, उस अनुभव पर हाथ डाल सके जिसका सरोकार इस सवाल से हो कि सामूहिक पागलपन के उस युग में इंसान के हाथों इंसान पर क्या बीती? उस इंसान का नाम और धर्म और सम्प्रदाय, ये सारी बातें गौण हैं।
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प्रस्तुत उपन्यास ऋतुचक्र एक अत्यन्त रोचक रोमांचक उपन्यास है जिसमें सुरम्य पहाड़ी प्रकृति के अन्तर्प्राणों में छिपे आनंद-कोष के मूलतत्वों का उद्घाटन, आज के रेगिस्तानी जीवन की विश्वव्यापी धूल और धुएँ के भीतर से हरियाली के बिखरे हुए बीजों की खोज, सामूहिक पागलपन के विरुद्ध वैयक्तिक आत्मा के विद्रोह का परिचित्रण, रोमांस की एकदम नई और मौलिक परिकल्पना, रोमांचक रोमांसों के रहस्यों की मार्मिक अन्तरकथा, युग-जीवन की विसंगतियों की कहानी इत्यादि तथ्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है।